कुछ इस तरह से लुटी है मता-ए-दीदा-ओ-दिल
कि अब किसी से भी ज़िक्र-ए-वफ़ा नहीं करते
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(740) Peoples Rate This
हम ही बदलेंगे रह-ओ-रस्म-ए-गुलिस्ताँ यारो
शिकस्त-ए-अहद-ए-सितम पर यक़ीन रखते हैं
ब-वस्फ़-ए-शौक़ भी दिल का कहा नहीं करते
मैं नुक्ता-चीं नहीं हूँ मगर ये बताइए
ब वस्फ़-ए-शौक़ भी दिल का कहा नहीं करते
फ़र्त-ए-ग़म-ए-हवादिस-ए-दौराँ के बावजूद
क्या क्या मोहब्बतों के ज़माने बदल गए
ज़िंदगी ग़म की आँच सह कोई
ग़म-ए-हबीब ग़म-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-दौराँ