रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
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यादों की तज्सीम पे मेहनत होती है
राज़-ए-दरून-ए-आस्तीं कश्मकश-ए-बयाँ में था
ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को
दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं
लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए
कुन-फ़यकूं का हासिल यानी मिट्टी आग हवा और पानी
फैल रहा है ये जो ख़ाली होने का डर मुझ में
आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम
न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है
तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
जल उठें यादों की क़ंदीलें, सदाएँ डूब जाएँ