न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
फ़क़ीर-ए-शहर है या शहरयार देखिएगा
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तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है
अभी हमें गुज़ारनी है एक उम्र-ए-मुख़्तसर
आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
अश्क भेजें मौज उभारें अब्र जारी कीजिए
वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है
दिया नसीब में नहीं सितारा बख़्त में नहीं
तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
ग़ुबार-ए-वक़्त के गर आर-पार देखिएगा
हमारे शहर की रिवायतों में एक ये भी था
हद्द-ए-गुमाँ से एक शख़्स दूर कहीं चला गया