हमारे शहर की रिवायतों में एक ये भी था
दुआ से क़ब्ल पूछना असर में कितनी देर है
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
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फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
अभी हमें गुज़ारनी है एक उम्र-ए-मुख़्तसर
तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
हद्द-ए-गुमाँ से एक शख़्स दूर कहीं चला गया
इनइकास-ए-तिश्नगी सहरा भी है दरिया भी है
लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए
ख़्वाब-ए-ज़ियाँ हैं उम्र का ख़्वाब हैं हासिल-ए-हयात
ग़ुबार-ए-वक़्त के गर आर-पार देखिएगा
आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम
नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी