अभी हमें गुज़ारनी है एक उम्र-ए-मुख़्तसर
मगर हमारी उम्र-ए-मुख़्तसर में कितनी देर है
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ख़ुश नहीं आए बयाबाँ मिरी वीरानी को
ग़ुबार-ए-वक़्त के गर आर-पार देखिएगा
रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है
अश्क भेजें मौज उभारें अब्र जारी कीजिए
नए ज़मानों की चाप तो सर पे आ खड़ी थी
तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
समाई किस तरह मेरी आँखों की पुतलियों में
न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
वो मर गया सदा-ए-नौहा-गर में कितनी देर है
इल्म का दम भरना छोड़ो भी और अमल को भूल भी जाओ
आईना बन के अपना तमाशा दिखाएँ हम