ग़र्क़ होते जहाज़ देखे हैं
सैल-ए-वक़्त-ए-रवाँ समझता हूँ
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(711) Peoples Rate This
हादिसा कौन सा हुआ पहले
हो दिन कि चाहे रात कोई मसअला नहीं
बहुत नज़दीक थे तस्वीर में हम
हादसा कौन सा हुआ पहले
जहाँ तक डूबने का डर है तुम को
रात-भर रोने का दिन था
करता है कार-ए-रौशनी मुझ को जला के दिन
रात इक हादसा हुआ मुझ में
तन्हा तन्हा सहमी सहमी ख़ामोशी
धुँद है या धुआँ समझता हूँ
कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है