ऐ हवा ओढ़ ली हम ने तेरी रिदा
ये सुहैल-ओ-कवाकिब ज़मीं आसमाँ
इब्तिदा इब्तिदा हैं ये सब इब्तिदा
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सुरूर
तिरी आश्नाई से तेरी रज़ा तक
हर तरफ़ जब से देखा ख़ला ही ख़ला
अकेले अकेले ही पा ली रिहाई
आवारगी
जला के दिल को रखा सुब्ह-ओ-शाम रोज़-ओ-शब
शब-ए-ज़ुल्मत
में महफ़िल-ए-हयात में हैरान सा रहा
लगा के आग बुझाने की बात करते हो
मक़्तल
आतिश-ए-इश्क़ भड़क उट्ठी है पैमाने मैं
रू-ब-रू-ए-मर्ग