कितने महबूब घरों से गए किस को मालूम
वापस आए हैं जो अपनों में ख़बर की सूरत
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(559) Peoples Rate This
सू-ए-मक़्तल कोई दम साथ चले
रौनक़ ही नहीं उस की हम रूह-ओ-रवाँ भी हैं
देखो उस ने क़दम क़दम पर साथ दिया बेगाने का
दिल में टीसें जाग उठती हैं पहलू बदलते वक़्त बहुत
अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है
किसी का चेहरा किसी पर सजा नहीं देता
दिल के हर ज़ख़्म को पलकों पे सजाया तो गया
होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो