मयस्सर से ज़ियादा चाहता है
समुंदर जैसे दरिया चाहता है
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दश्त को ढूँडने निकलूँ तो जज़ीरा निकले
तू साथ है मगर कहीं तेरा पता नहीं
कोई इल्ज़ाम मेरे नाम मेरे सर नहीं आया
ये पूछ आ के कौन नसीबों जिया है दिल
जैसे पानी पे नक़्श हो कोई
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए'तिबार फिर
हैरत के दफ़्तर जाऊँ
अंधा सफ़र है ज़ीस्त किसे छोड़ दे कहाँ
लहू तेज़ाब करना चाहता है
क़रार-ए-गुम-शुदा मेरे ख़ुदा कब आएगा
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें