ये पूछ आ के कौन नसीबों जिया है दिल
मत देख ये कि कौन सितारा है बख़्त में
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कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ
क़रार-ए-गुम-शुदा मेरे ख़ुदा कब आएगा
जियूँगा मैं तिरी साँसों में जब तक
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में
मैं नहीं हूँ नहीं कहीं भी नहीं
दश्त को ढूँडने निकलूँ तो जज़ीरा निकले
रख्खूँ कहाँ पे पाँव बढ़ाऊँ किधर क़दम
खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी
टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए'तिबार फिर
हज़ार कारवाँ यूँ तो हैं मेरे साथ मगर