ये कौन सी जगह है ये बस्ती है कौन सी
कोई भी इस जहान में तेरे सिवा नहीं
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अंधा सफ़र है ज़ीस्त किसे छोड़ दे कहाँ
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में
इश्क़ इक ऐसी हवेली है कि जिस से बाहर
हब्स-ए-दरूँ पे जिस्म-ए-गिराँ-बार संग था
हवा भी चाहिए और रौशनी भी
तू साथ है मगर कहीं तेरा पता नहीं
ये पूछ आ के कौन नसीबों जिया है दिल
बार-हा तू ने ख़्वाब दिखलाए
खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी
मैं नहीं हूँ नहीं कहीं भी नहीं
कोई सुनता ही नहीं किस को सुनाने लग जाएँ