मुझे तो कल भी न था उन पर इख़्तियार कोई
और उन को मुझ पे वही इख़्तियार आज भी है
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वो तअल्लुक़ है तिरे ग़म से कि अल्लाह अल्लाह
मोहब्बत क्या मोहब्बत का सिला क्या
मेरी बेताबियों से घबरा कर
वो क्या गए पयाम-ए-सफ़र दे गए मुझे
मुझे आँखें दिखाएगी भला क्या गर्दिश-ए-दौराँ
निगाह-ए-लुत्फ़ क्या कम हो गई है
दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
मोहब्बत का रग-ओ-पै में मिरी रूह-ए-रवाँ होना
मआल-ए-ज़ब्त-ए-पैहम हो गई है
दिल को शाइस्ता-ए-एहसास-ए-तमन्ना न करें
किसी के वादा-ए-फ़र्दा पर ए'तिबार तो है