ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
ज़िंदगी इक हसीन संगम है
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दबी आवाज़ में करती थी कल शिकवे ज़मीं मुझ से
राह-ए-उल्फ़त में मिले ऐसे भी दीवाने मुझे
शौक़-ए-मंज़िल हम-सफ़र है जज़्बा-ए-दिल राहबर
अब न वो शोरिश-ए-रफ़्तार न वो जोश-ए-जुनूँ
गो वसीअ' सहरा में इक हक़ीर ज़र्रा हूँ
मोनिस-ए-शब रफ़ीक़-ए-तन्हाई
शिकवे हम अपनी ज़बाँ पर कभी लाए तो नहीं
जिन हौसलों से मेरा जुनूँ मुतमइन न था
नज़्ज़ारा-ए-जमाल की फ़ुर्सत कहाँ मिली
जवानी हरीफ़-ए-सितम है तो क्या ग़म
तिरे दयार में कोई ग़म-आश्ना तो नहीं
मस्ती-ए-गाम भी थी ग़फ़लत-ए-अंजाम के साथ