एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं
आमद-ए-शब के क़ब्ल भी ख़त्म-ए-सहर के बाद भी
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दिल में जो दर्द है वो निगाहों से है अयाँ
मस्ती-ए-गाम भी थी ग़फ़लत-ए-अंजाम के साथ
उफ़ वो इक हर्फ़-ए-तमन्ना जो हमारे दिल में था
लज़्ज़त-ए-दर्द मिली इशरत-ए-एहसास मिली
इक आह-ए-ज़ेर-ए-लब के गुनहगार हो गए
ग़ैर पूछें भी तो हम क्या अपना अफ़्साना कहें
कम-ज़र्फ़ एहतियात की मंज़िल से आए हैं
अब दर्द में वो कैफ़ियत-ए-दर्द नहीं है
हम-सफ़र गुम रास्ते ना-पैद घबराता हूँ मैं
जो मक़्सद गिर्या-ए-पैहम का है वो हम समझते हैं
ये दुश्मनी है साक़ी या दोस्ती है साक़ी
होली