दिल में जो दर्द है वो निगाहों से है अयाँ
ये बात और है न कहें कुछ ज़बाँ से हम
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उफ़ वो इक हर्फ़-ए-तमन्ना जो हमारे दिल में था
है ख़मोश आँसुओं में भी नशात-ए-कामरानी
नया मय-कदे में निज़ाम आ गया
गुफ़्तुगू के ख़त्म हो जाने पर आया ये ख़याल
दिल का लहू निगाह से टपका है बार-हा
एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं
जिन हौसलों से मेरा जुनूँ मुतमइन न था
ज़ुल्मत-कदों में कल जो शुआ-ए-सहर गई
भूलती हुई याद
लज़्ज़त-ए-दर्द मिली इशरत-ए-एहसास मिली
जब छेड़ती हैं उन को गुमनाम आरज़ुएँ
होली