ग़ज़ब हुआ कि इन आँखों में अश्क भर आए
निगाह-ए-यास से कुछ और काम लेना था
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हैं वजूद-ए-शय में पिन्हाँ अज़ल ओ अबद के रिश्ते
आँखों में लिए जल्वा-ए-नैरंग-ए-तमाशा
जवानी हरीफ़-ए-सितम है तो क्या ग़म
इक आह-ए-ज़ेर-ए-लब के गुनहगार हो गए
मिरे हाथ सुलझा ही लेंगे किसी दिन
मोनिस-ए-शब रफ़ीक़-ए-तन्हाई
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
लज़्ज़त-ए-दर्द मिली इशरत-ए-एहसास मिली
जो मक़्सद गिर्या-ए-पैहम का है वो हम समझते हैं
दबी आवाज़ में करती थी कल शिकवे ज़मीं मुझ से
होली