मिरे हाथ सुलझा ही लेंगे किसी दिन
अभी ज़ुल्फ़-ए-हस्ती में ख़म है तो क्या ग़म
Ahmad Faraz
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Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
Gulzar
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Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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पी तो लूँ आँखों में उमडे हुए आँसू लेकिन
एक तुम्हारी याद ने लाख दिए जलाए हैं
ग़ज़ब हुआ कि इन आँखों में अश्क भर आए
इक आह-ए-ज़ेर-ए-लब के गुनहगार हो गए
दिल का लहू निगाह से टपका है बार-हा
कम-ज़र्फ़ एहतियात की मंज़िल से आए हैं
शौक़-ए-मंज़िल हम-सफ़र है जज़्बा-ए-दिल राहबर
उफ़ वो इक हर्फ़-ए-तमन्ना जो हमारे दिल में था
होली
ज़र्रा-ए-ना-तापीदा की ख़्वाहिश-ए-आफ़ताब क्या
हम अहल-ए-दिल ने मेयार-ए-मोहब्बत भी बदल डाले
आँखों में अश्क भर के मुझ से नज़र मिला के