आँखों में लिए जल्वा-ए-नैरंग-ए-तमाशा
आई है ख़िज़ाँ जश्न-ए-बहाराँ से गुज़र के
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जब कभी देखा है ऐ 'ज़ैदी' निगाह-ए-ग़ौर से
गो वसीअ' सहरा में इक हक़ीर ज़र्रा हूँ
दिल में जो दर्द है वो निगाहों से है अयाँ
राह-ए-उल्फ़त में मिले ऐसे भी दीवाने मुझे
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
अब न वो शोरिश-ए-रफ़्तार न वो जोश-ए-जुनूँ
ये दुश्मनी है साक़ी या दोस्ती है साक़ी
मंज़िल-ए-दिल मिली कहाँ ख़त्म-ए-सफ़र के बाद भी
अब दर्द में वो कैफ़ियत-ए-दर्द नहीं है
जवानी हरीफ़-ए-सितम है तो क्या ग़म
हम-सफ़र गुम रास्ते ना-पैद घबराता हूँ मैं