Sad Poetry of Ali Sardar Jafri (page 2)
नाम | अली सरदार जाफ़री |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Ali Sardar Jafri |
जन्म की तारीख | 1913 |
मौत की तिथि | 2000 |
जन्म स्थान | Mumbai |
ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिल-दार बहुत
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिलदार बहुत
वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ
वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें
वतन से दूर यारान-ए-वतन की याद आती है
वही हुस्न-ए-यार में है वही लाला-ज़ार में है
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
उलझे काँटों से कि खेले गुल-ए-तर से पहले
तुम्हारे ए'जाज़-ए-हुस्न की मेरे दिल पे लाखों इनायतें हैं
तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और
सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
शाख़-ए-गुल है कि ये तलवार खिंची है यारो
मस्ती-ए-रिंदाना हम सैराबी-ए-मय-ख़ाना हम
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं
लग़्ज़िश-ए-गाम लिए लग़्ज़िश-ए-मस्ताना लिए
कितनी आशाओं की लाशें सूखें दिल के आँगन में
ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम
ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ
कभी ख़ंदाँ कभी गिर्यां कभी रक़सा चलिए
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है
चश्मा-ए-बद-मस्त को फिर शेवा-ए-दिल-दारी दे
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
अभी और तेज़ कर ले सर-ए-ख़ंजर-ए-अदा को