कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
नियाज़-मंद न क्यूँ आजिज़ी पे नाज़ करे
Parveen Shakir
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Gulzar
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तिरा अंदेशा अफ़्लाकी नहीं है
फ़रमान-ए-ख़ुदा
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
आलम-ए-आब-ओ-ख़ाक-ओ-बाद सिर्र-ए-अयाँ है तू कि मैं
नाला-ए-फ़िराक़
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
ख़िरद ने मुझ को अता की नज़र हकीमाना
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ
औरत
तराना-ए-हिन्दी
अबुल-अला-म'अर्री