हर क़दम पे नाकामी हर क़दम पे महरूमी
ग़ालिबन कोई दुश्मन दोस्तों में शामिल है
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
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Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
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सुब्ह तक मैं सोचता हूँ शाम से
वो इक लफ़्ज़ जो बे-सदा जाएगा
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
होना पड़ा है ख़ूगर-ए-ग़म भी ख़ुशी की ख़ैर
जंग जारी है ख़ानदानों में
ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है
आज की रात भी गुज़री है मिरी कल की तरह
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
मैं क्या जानूँ घरों का हाल क्या है
मिरे हाल पर मेहरबानी करे
आइने से नज़र चुराते हैं