मैं क्या जानूँ घरों का हाल क्या है
मैं सारी ज़िंदगी बाहर रहा हूँ
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हाँ ये तौफ़ीक़ कभी मुझ को ख़ुदा देता था
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
चलो कि ख़ुद ही करें रू-नुमाइयाँ अपनी
मिरे हाल पर मेहरबानी करे
ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है
इक परिंदा अभी उड़ान में है
अपने हमराह ख़ुद चला करना
हर एक हाथ में पत्थर दिखाई देता है
जाने ये किस की बनाई हुई तस्वीरें हैं
वो इक लफ़्ज़ जो बे-सदा जाएगा
हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब