लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है
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जश्न-ए-बहार-ए-नौ है नशेमन की ख़ैर हो
कुछ तो अपनी ख़बर मिले मुझ को
हाँ ये तौफ़ीक़ कभी मुझ को ख़ुदा देता था
लोग बनते हैं होशियार बहुत
आइने से नज़र चुराते हैं
नज़र आने से पहले डर रहा हूँ
हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
दामन पे लहू हाथ में ख़ंजर न मिलेगा
नज़र में हर दुश्वारी रख
मैं क्या जानूँ घरों का हाल क्या है
चलो कि ख़ुद ही करें रू-नुमाइयाँ अपनी