जश्न-ए-बहार-ए-नौ है नशेमन की ख़ैर हो
उट्ठा है क्यूँ चमन में धुआँ रौशनी के साथ
Parveen Shakir
Anwar Masood
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
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इक परिंदा अभी उड़ान में है
लोग बनते हैं होशियार बहुत
फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
दर्द का शहर कहीं कर्ब का सहरा होगा
ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
मिरे हाल पर मेहरबानी करे
मिरे पड़ोस में ऐसे भी लोग बसते हैं
मेरी पहचान है क्या मेरा पता दे मुझ को
मुझ से बच बच के चली है दुनिया
क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी
जाने ये किस की बनाई हुई तस्वीरें हैं