इतना बेदारियों से काम न लो
दोस्तो ख़्वाब भी ज़रूरी है
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यार क्या ज़िंदगी है सूरज की
हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब
दिल में बे-नाम सी ख़ुशी है अभी
ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है
ख़ुद अपने साथ सफ़र में रहे तो अच्छा है
आइने से नज़र चुराते हैं
होना पड़ा है ख़ूगर-ए-ग़म भी ख़ुशी की ख़ैर
वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसाँ था
मिरे पड़ोस में ऐसे भी लोग बसते हैं
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी