यार क्या ज़िंदगी है सूरज की
सुब्ह से शाम तक जला करना
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वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसाँ था
इक परिंदा अभी उड़ान में है
जाने ये किस की बनाई हुई तस्वीरें हैं
यकुम जनवरी है नया साल है
दामन पे लहू हाथ में ख़ंजर न मिलेगा
मुज़्तरिब हैं मौजें क्यूँ उठ रहे हैं तूफ़ाँ क्यूँ
बसर होना बहुत दुश्वार सा है
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
नक़्श पानी पे बना हो जैसे
इतना बेदारियों से काम न लो