वक़्त के साथ बदलना तो बहुत आसाँ था
मुझ से हर वक़्त मुख़ातिब रही ग़ैरत मेरी
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मिरे पड़ोस में ऐसे भी लोग बसते हैं
मिरे हाल पर मेहरबानी करे
दूर बैठा हुआ तन्हा सब से
हर क़दम पे नाकामी हर क़दम पे महरूमी
वो इक लफ़्ज़ जो बे-सदा जाएगा
ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
ज़िंदगी की दौड़ में पीछे न था
हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब
दिल में बे-नाम सी ख़ुशी है अभी
यकुम जनवरी है नया साल है
ज़बाँ है मगर बे-ज़बानों में है
दर्द का शहर कहीं कर्ब का सहरा होगा