ज़िंदगी की दौड़ में पीछे न था
रह गया वो सिर्फ़ दो इक गाम से
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मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
जंग जारी है ख़ानदानों में
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
लोग बनते हैं होशियार बहुत
आइने से नज़र चुराते हैं
वो सर-फिरी हवा थी सँभलना पड़ा मुझे
यकुम जनवरी है नया साल है
अपने हमराह ख़ुद चला करना
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
ख़ुद अपने साथ सफ़र में रहे तो अच्छा है
मुझ से बच बच के चली है दुनिया
क्या गुज़रती है मिरे बाद उस पर