अपने हमराह ख़ुद चला करना
कौन आएगा मत रुका करना
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नक़्श पानी पे बना हो जैसे
नज़र में हर दुश्वारी रख
बनते हैं फ़रज़ाने लोग
न पूछ मंज़र-ए-शाम-ओ-सहर पे क्या गुज़री
सुब्ह तक मैं सोचता हूँ शाम से
कहीं सलीब कहीं कर्बला नज़र आए
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
पाईं हर एक राह-गुज़र पर उदासियाँ
इक परिंदा अभी उड़ान में है
हर रहगुज़र में काहकशाँ छोड़ जाऊँगा