आज की रात भी गुज़री है मिरी कल की तरह
हाथ आए न सितारे तिरे आँचल की तरह
Wasi Shah
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Gulzar
Rahat Indori
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नज़र आने से पहले डर रहा हूँ
सुना है अब भी मिरे हाथ की लकीरों में
यकुम जनवरी है नया साल है
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
इतना बेदारियों से काम न लो
मिरे पड़ोस में ऐसे भी लोग बसते हैं
वो इक लफ़्ज़ जो बे-सदा जाएगा
नक़्श पानी पे बना हो जैसे
अपने हमराह ख़ुद चला करना
इक परिंदा अभी उड़ान में है
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा