ज़िंदगी और हैं कितने तिरे चेहरे ये बता
तुझ से इक उम्र की हालाँकि शनासाई है
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नज़र आने से पहले डर रहा हूँ
नज़र नज़र हैरानी दे
नज़र में हर दुश्वारी रख
हर गाम हादसा है ठहर जाइए जनाब
मिरे हाल पर मेहरबानी करे
हाँ ये तौफ़ीक़ कभी मुझ को ख़ुदा देता था
ख़ौफ़ बन कर ये ख़याल आता है अक्सर मुझ को
तुम राह में चुप-चाप खड़े हो तो गए हो
आँखें खुली हुई हैं तो मंज़र भी आएगा
दामन पे लहू हाथ में ख़ंजर न मिलेगा
इक परिंदा अभी उड़ान में है