क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी
मेरे सोगवारों में आज मेरा क़ातिल है
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ख़ुद अपने साथ सफ़र में रहे तो अच्छा है
मिरे घर में तो कोई भी नहीं है
ख़ौफ़ बन कर ये ख़याल आता है अक्सर मुझ को
नज़र में हर दुश्वारी रख
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़
जश्न-ए-बहार-ए-नौ है नशेमन की ख़ैर हो
नज़र नज़र हैरानी दे
अपने हमराह ख़ुद चला करना
मिरे हाल पर मेहरबानी करे
कहीं सलीब कहीं कर्बला नज़र आए
पूछा है ग़ैर से मिरे हाल-ए-तबाह को
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी