वही चर्चे वही क़िस्से मिली रुस्वाइयाँ हम को
उन्ही क़िस्सों से वो मशहूर हो जाए तो क्या कीजे
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सुब्ह-ए-रौशन को अंधेरों से भरी शाम न दे
कौन था मेरे अलावा उस का
बन गए दिल के फ़साने क्या क्या
न तो ख़ौफ़ रोज़-ए-जज़ा का हो वही इश्क़ है
रक़ीब-ए-जाँ नज़र का नूर हो जाए तो क्या कीजे
तुझी से गुफ़्तुगू हर दम तिरी ही जुस्तुजू हर दम
कम्बख़्त दिल ने इश्क़ को वहशत बना दिया
हम ने हज़ार फ़ासले जी कर तमाम शब
दो किनारों को मिलाया था फ़क़त लहरों ने
कोई तदबीर न तक़दीर से लेना-देना
वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए