तू ने फेरी लाख नर्मी से नज़र
दिल के आईने में बाल आ ही गया
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इल्म-ओ-जाह-ओ-ज़ोर-ओ-ज़र कुछ भी न देखा जाए है
हद-ए-तकमील को पहुँची तिरी रानाई-ए-हुस्न
अब और इस से सिवा चाहते हो क्या 'मुल्ला'
रोने वाले तुझे रोने का सलीक़ा ही नहीं
निगाह-ओ-दिल का अफ़्साना क़रीब-ए-इख़्तिताम आया
ज़िंदगी गो कुश्ता-ए-आलाम है
क़हर की क्यूँ निगाह है प्यारे
हुस्न के जल्वे नहीं मुहताज-ए-चश्म-ए-आरज़ू
अक़्ल के भटके होऊँ को राह दिखलाते हुए
भूले से भी लब पर सुख़न अपना नहीं आता
दिल की दिल को ख़बर नहीं मिलती
मोहब्बत फ़र्क़ खो देती है आ'ला और अदना का