सारी दुनिया से बे-नियाज़ी है
वाह ऐ मस्त-ए-नाज़ क्या कहना
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रुमूज़-ए-मोहब्बत
जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
ज़ुल्मत-ए-दश्त-ए-अदम में भी अगर जाऊँगा
मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं
तेरे शबाब ने किया मुझ को जुनूँ से आश्ना
जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू
लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
आह क्या क्या आरज़ूएँ नज़्र-ए-हिरमाँ हो गईं
ख़ुदा की देन है जिस को नसीब हो जाए
इलाही कश्ती-ए-दिल बह रही है किस समुंदर में