जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
ग़ज़ब है रंग-ए-शबाब-ए-मस्ती कि रिंद ओ ज़ाहिद बहक रहे हैं
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जहाँ पे छाया सहाब-ए-मस्ती बरस रही है शराब-ए-मस्ती
ग़ज़ब है रंग-ए-शबाब-ए-मस्ती कि रिंद ओ ज़ाहिद बहक रहे हैं
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