ऐ शैख़ वो बसीत हक़ीक़त है कुफ़्र की
कुछ क़ैद-ए-रस्म ने जिसे ईमाँ बना दिया
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(704) Peoples Rate This
न कुछ फ़ना की ख़बर है न है बक़ा मालूम
नहीं दैर ओ हरम से काम हम उल्फ़त के बंदे हैं
मय-ए-बे-रंग का सौ रंग से रुस्वा होना
यूँ न मायूस हो ऐ शोरिश-ए-नाकाम अभी
लज़्ज़त-ए-सज्दा-हा-ए-शौक़ न पूछ
अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं
ये भी फ़रेब से हैं कुछ दर्द आशिक़ी के
आरिज़-ए-नाज़ुक पे उन के रंग सा कुछ आ गया
मजाज़ कैसा कहाँ हक़ीक़त अभी तुझे कुछ ख़बर नहीं है
आशोब-ए-हुस्न की भी कोई दास्ताँ रहे
तू एक नाम है मगर सदा-ए-ख़्वाब की तरह
ये इश्क़ ने देखा है ये अक़्ल से पिन्हाँ है