लज़्ज़त-ए-सज्दा-हा-ए-शौक़ न पूछ
हाए वो इत्तिसाल-ए-नाज़-ओ-नियाज़
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वहीं से इश्क़ ने भी शोरिशें उड़ाई हैं
मता-ए-ज़ीस्त क्या हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं
माइल-ए-शेर-ओ-ग़ज़ल फिर है तबीअत 'असग़र'
मय-ए-बे-रंग का सौ रंग से रुस्वा होना
मैं कामयाब-ए-दीद भी महरूम-ए-दीद भी
मुझ को ख़बर रही न रुख़-ए-बे-नक़ाब की
मैं क्या कहूँ कहाँ है मोहब्बत कहाँ नहीं
ये क्या कहा कि ग़म-ए-इश्क़ नागवार हुआ
गर्म-ए-तलाश-ओ-जुस्तुजू अब है तिरी नज़र कहाँ
मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में
यूँ न मायूस हो ऐ शोरिश-ए-नाकाम अभी
मुझ से जो चाहिए वो दर्स-ए-बसीरत लीजे