बच्चे खुली फ़ज़ा में कहाँ तक निकल गए
हम लोग अब भी क़ैद इसी बाम-ओ-दर में हैं
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
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जो हादिसा कि मेरे लिए दर्दनाक था
मोहब्बत कर के शर्मिंदा नहीं हूँ
सराए
चेहरों को बे-नक़ाब समझने लगा था मैं
मेरे ही पाँव मिरे सब से बड़े दुश्मन हैं
आने वाले दौर में जो पाएगा पैग़म्बरी
जो इस ज़मीर फ़रोशी के माहेरीन में है
बैसाखी
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
जला जला के दिए पास पास रखते हैं
ना-गुज़ीर
ज़िक्र-ए-अस्लाफ़ से बेहतर है कि ख़ामोश रहें