जो हादिसा कि मेरे लिए दर्दनाक था
वो दूसरों से सुन के फ़साना लगा मुझे
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जो सज़ा चाहो मोहब्बत से दो यारो मुझ को
सराए
आदमी पहले भी नंगा था मगर जिस्म तलक
ज़िक्र-ए-अस्लाफ़ से बेहतर है कि ख़ामोश रहें
आने वाले दौर में जो पाएगा पैग़म्बरी
टूट कर रूह में शीशों की तरह चुभते हैं
घरौंदे
जाने किस किस का गला कटता पस-ए-पर्दा-ए-इश्क़
फूल पत्थर की चटानों पे खिलाएँ हम भी
कुल्लो-मन-अलैहा-फ़ान
बैसाखी