टूट कर रूह में शीशों की तरह चुभते हैं
फिर भी हर आदमी ख़्वाबों का तमन्नाई है
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(874) Peoples Rate This
बस्ती मिली मकान मिले बाम-ओ-दर मिले
हम भी करते रहें तक़ाज़ा रोज़
गिर भी जाती नहीं कम-बख़्त कि फ़ुर्सत हो जाए
हुसैन
सराए
खो गई जा के नज़र यूँ रुख़-ए-रौशन के क़रीब
बे-निशान क़दमों की कहकशाँ पकड़ते हैं
आए थे घर में आग लगाने शरीर लोग
घरौंदे
प्यासा रहा मैं बाला-क़दी के फ़रेब में
डूबने वाले को साहिल से सदाएँ मत दो
इस से पहले कि हवा मुझ को उड़ा ले जाए