ज़िक्र-ए-अस्लाफ़ से बेहतर है कि ख़ामोश रहें
कल नई नस्ल में हम लोग भी बूढ़े होंगे
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(849) Peoples Rate This
जाने किस किस का गला कटता पस-ए-पर्दा-ए-इश्क़
मोहब्बत कर के शर्मिंदा नहीं हूँ
बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया
बाहर का माहौल तो हम को अक्सर अच्छा लगता है
मेरा बचपन ही मुझे याद दिलाने आए
हुसैन
हमेशा तंग रहा मुझ पे ज़िंदगी का लिबास
काम कुछ तो लेना था अपने दीदा-ए-तर से
अनार्किज़्म
चेहरों को बे-नक़ाब समझने लगा था मैं
इतना एहसास तो दे पालने वाले मुझ को
प्यासा रहा मैं बाला-क़दी के फ़रेब में