आने वाले दौर में जो पाएगा पैग़म्बरी
मेरा चेहरा मेरा दिल मेरी ज़बाँ ले जाएगा
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Habib Jalib
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बच्चे खुली फ़ज़ा में कहाँ तक निकल गए
मेरे ही पाँव मिरे सब से बड़े दुश्मन हैं
अनार्किज़्म
ना-गुज़ीर
जो सज़ा चाहो मोहब्बत से दो यारो मुझ को
जला जला के दिए पास पास रखते हैं
हमेशा तंग रहा मुझ पे ज़िंदगी का लिबास
बचपन तमाम बूढ़े सवालों में कट गया
ये तो सच है कि टूटे फूटे हैं
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
प्यासा रहा मैं बाला-क़दी के फ़रेब में
हम भी करते रहें तक़ाज़ा रोज़