होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में
तन्हाइयों ने ऐसा मुक़फ़्फ़ल किया मुझे
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तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे
हम ने देखा है इतने खंडर ख़्वाब में
हीला है हवाला है
आओ तो मेरे सहन में हो जाए रौशनी
सोचते हैं कि बुलबुला हो जाएँ
तमाम दिन की मशक़्क़त-भरी तकान के ब'अद
दिल मानता नहीं है मनाने के बअ'द भी
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को तिरी याद ने भरने न दिया
सवेरा ले के आता है मिरे ख़्वाबों की ताबीरें
आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
इक लफ़्ज़ याद था मुझे तर्क-ए-वफ़ा मगर