आज भी नक़्श हैं दिल पर तिरी आहट के निशाँ
हम ने उस राह से औरों को गुज़रने न दिया
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याद रखना भी इक इबादत है
घटा जब रक़्स करती है तो उन की याद आती है
आओ तो मेरे सहन में हो जाए रौशनी
ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को तिरी याद ने भरने न दिया
तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे
सवेरा ले के आता है मिरे ख़्वाबों की ताबीरें
होश-ओ-हवास खोने लगा हूँ फ़िराक़ में
ज़िंदगी की हक़ीक़त अजब हो गई
वो मेरा है तो कभी भी न आज़माऊँ उसे
हीला है हवाला है
आ जाओ अब तो ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए