हम को सँभालता कोई क्या राह-ए-इश्क़ में
खा खा के ठोकरें हमीं आख़िर सँभल गए
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शोख़ी उफ़-रे तिरी नज़र की
नाले हैं न आहें हैं न रोना न तड़पना
कोई रुस्वा कोई सौदाई है
बहुत कुछ देखना है आगे आगे
बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ
नारा-ए-तकबीर भी ज़ाहिद निसार-ए-नग़मा है
आराम अपने बस का है बस मैं नहीं है किया
आँखों में तिरी शक्ल है दिल में है तिरी याद
जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
शीशे खुले नहीं अभी साग़र चले नहीं
नस्रीं में ये महक है न ये नस्तरन में है