चार सम्तें आईना सी हर तरफ़
तुम को खो देने का मंज़र और मैं
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अब आँख भी मश्शाक़ हुई ज़ेर-ओ-ज़बर की
आसमाँ साहिल समुंदर और मैं
सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी
ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक कुछ और कहे
उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया
अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या
बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा
रंग अपने जो थे भर भी कहाँ पाए कभी हम
बहर-ए-चराग़ ख़ुद को जलाने वाली मैं