ज़मीं के और तक़ाज़े फ़लक कुछ और कहे
क़लम भी चुप है कि अब मोड़ ले कहानी क्या
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(956) Peoples Rate This
अब अपनी चीख़ भी क्या अपनी बे ज़बानी क्या
रंग अपने जो थे भर भी कहाँ पाए कभी हम
आसमाँ साहिल समुंदर और मैं
बे-ख़ुदा होने के डर में बे-सबब रोता रहा
बहर-ए-चराग़ ख़ुद को जलाने वाली मैं
उस ने मेरे नाम सूरज चाँद तारे लिख दिया
चार सम्तें आईना सी हर तरफ़
सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी
अब आँख भी मश्शाक़ हुई ज़ेर-ओ-ज़बर की