सीरत के हम ग़ुलाम हैं सूरत हुई तो क्या
सुर्ख़ ओ सफ़ेद मिट्टी की मूरत हुई तो क्या
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जो ज़मीं पर फ़राग़ रखते हैं
कोई समझाईयो यारो मिरा महबूब जाता है
पूछता कौन है डरता है तू ऐ यार अबस
रात उस तुनुक-मिज़ाज से कुछ बात बढ़ गई
ज़ुल्फ़ तेरी ने परेशाँ किया ऐ यार मुझे
न फ़क़त यार बिन शराब है तल्ख़
तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा
हम सरगुज़िश्त क्या कहें अपनी कि मिस्ल-ए-ख़ार
कहता है कौन हिज्र मुझे सुब्ह ओ शाम हो
ये आरज़ू है कि वो नामा-बर से ले काग़ज़
लहू टपका किसी की आरज़ू से