लहू टपका किसी की आरज़ू से
हमारी आरज़ू टपकी लहू से
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जादू थी सेहर थी बला थी
कहता है कौन हिज्र मुझे सुब्ह ओ शाम हो
शिकवा अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ
ये आरज़ू है कि वो नामा-बर से ले काग़ज़
रात उस तुनुक-मिज़ाज से कुछ बात बढ़ गई
तेरा सितम जो मुझ से गदा ने सहा सहा
तेग़ चढ़ उस की सान पर आई
मत सता मुझ को आन आन अज़ीज़
पूछता कौन है डरता है तू ऐ यार अबस
इश्वा है नाज़ है ग़म्ज़ा है अदा है क्या है
ये ख़ूब-रू न छुरी ने कटार रखते हैं
हम सरगुज़िश्त क्या कहें अपनी कि मिस्ल-ए-ख़ार